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Friday, 6 January 2012

maharana pratap

 
महाराणा प्रताप (9
मई, 1540- 19 जनवरी,
1597) उदयपुर, मेवाड में
शिशोदिया राजवंश के
राजा थे। उनका नाम
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इतिहास में वीरता और
दृढ प्रण के लिये अमर है।
हन्होंने कई वर्षों तक
मुगल सम्राट अकबर के
साथ संघर्ष किया।
इनका जन्म राजस्थान के
कुम्भलगढ में
महाराणा उदयसिंह एवं
माता राणी जीवत कँवर
के घर हुआ था। 1576 के
हल्दीघाटी युद्ध में 20,000
राजपूतों को साथ लेकर
राणा प्रताप ने मुगल
सरदार राजा मानसिंह के
80,000
की सेना का सामना किया।
शत्रु सेना से घिर चुके
महाराणा प्रताप
को शक्ति सिंह ने बचाया।
उनके प्रिय अश्व चेतक
की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध
तो केवल एक दिन
चला परन्तु इसमें 17,000
लोग मारे गएँ। मेवाड़
को जीतने के लिये अकबर ने
सभी प्रयास किये।
महाराणा की हालत
दिन-प्रतिदिन चिंतीत
हुइ। 25,000
राजपूतों को 12 साल तक
चले उतना अनुदान देकर
भामा शा भी अमर हुआ।

लोक में रहेंगे परलोक
हु ल्हेंगे तोहू,
पत्ता भूली हेंगे
कहा चेतक
की चाकरी ||

में तो अधीन सब
भांति सो तुम्हारे
सदा एकलिंग,
तापे कहा फेर जयमत
हवे नागारो दे ||

करनो तू चाहे कछु
और नुकसान कर ,
धर्मराज ! मेरे घर
एतो मत धारो दे ||

दीन होई बोलत हूँ
पीछो जीयदान
देहूं ,
करुना निधान
नाथ ! अबके
तो टारो दे ||

बार बार कहत
प्रताप मेरे चेतक
को ,
एरे करतार ! एक
बार तो उधारो||

=>बाहरी कडियाँ

*चित्तौड़गढ़
का इतिहास*
महाराणा प्रताप
का जन्म
कुम्भलगढ दुर्ग
में हुआ था।
महाराणा प्रताप
की माता का नाम
जैवन्ताबाई
था,जो पाली के
सोनगरा अखैराज
की बेटी थी।
महाराणा प्रताप
को बचपन में
कीका के नाम
से
पुकारा जाता था।
महाराणा प्रताप
का राज्याभिषेक
गोगुन्दा में
हुआ।
महाराणा प्रताप
ने भी अकबर
की अधीनता को स्वीकार
नहीं किया था।
अकबर ने
महाराणा प्रताप
को समझाने के
लिये क्रमश:
चार
शान्ति दूतों को भेजा।
1-जलाल
सिंह
2-मानसिंह
3-भगवान
दास
4-टोडरमल
हल्दीघाटी का युद्ध
यह युद्ध जून 1576 ईस्वी में
मेवाड तथा मुगलों के मध्य
हुआ था। इस युद्ध में मेवाड
की सेना का नेतृत्व
महाराणा प्रताप ने
किया था। इस युद्ध में
महाराणा प्रताप
की तरफ से लडने वाले
एकमात्र मुस्लिम सरदार
थे-हकीम खाँ सूरी।
इस युद्ध में
मुगल
सेना का नेतृत्व
मानसिंह
तथा आसफ
खाँ ने किया।
इस युद्ध
का आँखों देखा वर्णन
अब्दुल कादिर
बदायूनीं ने
किया। इस
युद्ध को आसफ
खाँ ने
अप्रत्यक्ष रूप
से जेहाद
की संज्ञा दी।
इस युद्ध में
बींदा के
झालामान ने
अपने
प्राणों का बलिदान
करके
महाराणा प्रताप
के जीवन
की रक्षा की ।

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